संदीप का हाथ अन्दर पता नहीं क्या कर रहा था लेकिन दीदी के चेहरे की गर्मी और उस पर का सुकून तो बस दोस्तों वही समझ सकता है जिसने खुद ये ताश के पत्ते फेंटे हों।
मेरा तो इतना बुरा हाल हो गया था कि लग रहा था किसी भी समय पिचकारी छूट जायेगी, लेकिन, तभी कुछ आवाज हुई और दोनों अलग हो गए।
संदीप के चेहरे को देख कर लगा रहा था कि बस मलाई खानी रह गई थी, और दीदी को तो पूरे 2 मिनट लग गए साँसों की धौंकनी शांत करने में।
तभी वहाँ चाची वापिस आ गई। दीदी और भैया के हावभाव बदले देख चाची बोली- लगता है मुझे थोड़ी देर में आना चाहिए था। ऑश.. ये क्या .. क्या चाची को इन सब के बारे में मालूम था.. या वो बस चुटकी ले रही थी।
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मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस इतना मालूम था कि आज तो बहुत बार मूठ मारने के बाद भी शायद नींद नहीं आने वाली थी।
उस दिन के बाद मैं हर वक़्त दीदी पर नज़र रखता था ताकि मुझे कुछ और पता चले कि आख़िर हमारे घर में चल क्या रहा है? मुझे हर वक़्त यही लगता था कि दीदी अब उस संदीप से चुद रही होगी और हमेशा दीदी और संदीप की ब्लू फिल्म चल रही होती।
मेरा मन अब बहुत बेचैन होने लगा था क्योंकि एक तो मेरी खुद की बहन चुदास निकली और दूसरा मैं इस खीर को अभी तक क्यों नहीं खा पाया।
भई, अपना भी लंड किसी गाँव के गबरू से कम थोड़े न है, शहर की कितनी लड़कियाँ आज भी कहती हैं- क्या राजा, तुम तो आते नहीं, किसी और से पूरा पड़ता नहीं, कभी तो आ जाया करो।
एक दिन की बात है, दादा, दादी और मम्मी तीनों किसी की शादी में गये थे। मेरी तबीयत खराब थी इसीलिए मैं रुक गया और चाची और दीदी अपने बच्चों की वजह से नहीं गये। मैं अपने कमरे में लेटा आराम कर रहा था कि मुझे बाहर से चाची और दीदी के बात करने की आवाज़ आई और मेरे कान खड़े हो गए, क्योंकि बात आमों की हो रही थी।
दीदी : चाची, मैं थोड़ि देर के लिए आम के बगीचे में जा रही हूँ..
चाची : अभी, दोपहर के 1 बजे? इतना सन्नाटा होगा वहाँ और गर्मी भी। शाम को जाना।
दीदी : नहीं मुझे अभी आम खाने हैं, मैं जा रही हूँ, एक बोरी दो, थोड़े आम भी ले आऊँगी आते हुए।
चाची कुछ चिढ़ते हुए : ये बहाने मार कर जाने की जरूरत क्या है तुझे, तेरी इन्हीं हरकतों की वजह से तेरी शादी इतनी जल्दी करनी पड़ी। शर्म लाज तो है ही नहीं तेरे अन्दर अब।
दीदी : अब चाची मेरा सिर मत खाओ, मेरा मुँह खुल गया तो तुम्हें इस घर से धक्के मार कर बाहर निकाल देंगे सब।
यह सुनते ही चाची चुप हो गईं। मैं अपने कमरे से बाहर आ कर देखने लगा। दीदी आम लाने के लिए एक बहुत बड़ी बोरी ले रही थी। मैं समझ चुका था कि आज दीदी की चुदाई पक्की है। मैं फटाफट घर से निकल लिया और बोल कर गया कि मैं शाम तक आऊँगा।हमारा आम का बाग़ घर से कुछ दि किलोमीटर दूर है और 20-25 आम के पेड़ हैं वहाँ, बिल्कुल सन्नाटा रहता है गर्मियों की दोपहर में वहाँ। मैंने जल्दी जल्दी वहाँ पहुँच कर अपने छुपने के लिए जगह ढूंढी जहाँ से अधिकतर बाग दिख रहा था।
करीब आधे घंटे बाद मैंने देखा कि दीदी बाग़ की तरफ अकेले ही आ रही हैं। आज मैं उन्हें एक औरत की नज़र से देख रहा था। क्या क़यामत सी माल थी वो !
हल्के गुलाबी रंग की सिल्क साड़ी जिसका पल्लू हमेशा उनकी चूची के ऊपर से फिसल जाता और दुनिया को उनके 36 इंच की बिना ब्रा, ब्लाउज में क़ैद चूचियों के दर्शन हो जाते थे। हल्की पतली कमर, जिस पर थोड़ा सा पेट निकल गया है, बस उतना ही जो उनके कोमल दूध जैसे साफ़ शरीर को और कामुक बनाता है। उनका चलना तो एक पेशेवर रंडी से कम नहीं, मोटी 38 इंच की उभरी हुई गांड, साड़ी के अंदर एक बार इधर गांड मटकती तो दूसरी बार उधर। कसम खा कर कहता हूँ, शायद ही दुनिया में कोई ऐसा मर्द हो जो उन्हें देख कर चोदने की इच्छा ना करे।
दीदी आकर एक पेड़ के नीचे बोरी रखकर इधर उधर देखने लगी। फिर अपना साड़ी का पल्लू हाथ में लिया और और अपनी कमर में लपेट के पेटीकोट में फंसा दिया।
ओह… क्या नज़ारा है मेरे सामने.. कयामत ! कमर से ऊपर के बदन पर नाम मात्र का एक छोटा सा ब्लाउज, जिसके बीच के हुक्स के बीच से दीदी की गोरी गोरी चूचियों का कुछ हिस्सा दिख रहा था।
ये सब अब मेरी बरदाश्त से बाहर हो रहा था। मैंने अपनी पैंट खोली और अपने लंड को बाहर निकाल सहलाने लगा। थोड़ी देर तक दीदी ने पेड़ों से गिरे हुए आम इकट्ठे किए। तभी दूर से एक काफ़ी हट्टा कट्टा आदमी आता हुआ दिखाई दिया।
अरे यह तो हमारे गाँव का दर्जी है।
मुझे तो लगा था कि संदीप आकर दीदी को चोदेगा, लेकिन, ये क्या?
वो दर्जी करीब 6’3″ लंबा और काफ़ी बलवान लग रहा था। उसे देखते ही दीदी की शक्ल पर एक खुशी की लहर दौड़ उठी। वो दीदी के पास आकर कुछ बात करने लगा। मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, मगर देख पा रहा था।
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दीदी उस दानव के आगे एक छोटी सी बच्ची लग रही थी। एक बार तो मुझे लगा कि यह शैतान तो मेरी दीदी की चूत का भोसड़ा बना देगा। तभी वो दोनों बोरी उठाकर मेरी तरफ आने लगे। डर के मारे मेरा तो पोपट हो गया। मैं बाग के सबसे घने हिस्से में था,जिसके आगे खेतों में अरहर की फसल उगी हुई थी और शायद उसी में चुदाई का कार्यक्रम होना था।
वो दोनों अपनी मस्ती में मुझसे थोड़ी दूर पर से उन खेतों के किनारे ही रुक गये और बोरी बिछा ली।
मेरी धड़कनें रुकने लगी थीं, क्या मैं सपना देख रहा हूँ? या सच में मेरी माल बहन चुदने जा रही है। एक एक पल मुझ पर और मेरे लंड पर कयामत ढा रहा थ। वो दोनो उस झाड़ की तरफ गये और जाते ही धर्मेश(दर्ज़ी) ने दीदी को बाहों में ले लिया और उसके होठों को बेरहमी से चूसने लगा। दोनों एक दूसरे में इतना खो गये थे कि अगर वहाँ कोई आ भी जाता तो शायद उन्हें पता नहीं चलता।
दीदी ने उससे अलग होकर जल्दी से बोरी बिछाई और उस पर लेट गईं टाँगें चौड़ी करके- जैसे उसे आमन्त्रित कर रही हो।
दीदी के कामुक बदन पर अब साड़ी की हालत और बुरी हो गई थी। ब्लाउज के 2 बटन धर्मेश ने खोल दिए थे जिससे दीदी की जवानी के रस से भरे चूचे आधे बाहर आकर मचल रहे थे और नीचे लेट जाने की वजह से उनकी साड़ी भी अब थोड़ी ऊपर हो गई थी। जिससे उनके गोरे गोरे पैर एवं मांसल जाँघों का सुन्दर नजारा मेरी आँखों के सामने था।
दोनों एक दूसरे को बुरी तरह चूम रहे थे। इस वक़्त तो मेरी दीदी पूरी छिनाल की तरह उस शैतान आदमी को चूम रही थी। वो बड़ी बेरहमी से दीदी की चूचियाँ मसल रहा था और दीदी आनन्दित हुई जा रही थी। उनकी शक्ल पर उस एहसास का सुख साफ़ साफ़ दिख रहा था।
तभी उसने एक चूची बाहर निकलनी चाही तो दीदी ने मना कर दिया और जल्दी चोदने का इशारा किया।
बस फिर क्या था, धर्मेश ने फटाफट दीदी की साड़ी को ऊपर कर कमर तक चढ़ा दिया।
आआअहह, क्या नज़ारा था। मैं अपनी ही सग़ी बहन को दस कदम दूर रंडियों की तरह बेशर्मी से चुदते देख रहा था और मेरा तम्बू और ऊपर उठ रहा था। दीदी ने पैंटी नहीं पहनी थी, सोचिये, दूध जैसी गोरी जाँघें और गुल गुल उभरी हुई गान्ड।
भगवान ने पूरी काम की देवी बनाकर भेजा है दीदी को। मैं तो तसल्ली से उनके सुंदर और कामुक शरीर का आनन्द लेना चाहता था मगर शायद उन दोनों के पास ज़्यादा वक़्त नहीं था।
इसीलिए बिना और वक़्त ख़राब किये धर्मेश ने अपना पाजामा और अंडरवियर नीचे करके अपना लंड बाहर निकाला। जैसा शरीर था वैसा ही शैतानी लंड था उसके पास। मेरी कलाई जितना मोटा और अंदाज़न करीब 7 इंच लंबा और बिल्कुल काला, बिल्कुल तन्ना कर खड़ा था !
उसने अपने लंड पर थूक लगाया और दीदी की चूत पर टिका कर एक धक्का मारा।
दीदी थोड़ा मचल उठी, मगर उनकी शक्ल पर कोई दर्द का भाव नहीं था। धीरे धीरे उसके कुछ ही धक्कों के बाद पूरा लंड दीदी की चूत में समा गया और चल निकला वो घमासान युद्ध जिसमें जीत शायद आदम या शायद हव्वा की होती है, या दोनों की।
करीब 20 मिनट तक लगातार चुदाई के बाद जब आस पास का महौल दीदी के रस की खुशबू में भीगने लगा, दीदी के मुंह से सिसकारियाँ निकलनी शुरू हो गईं, और मेरा भी बोलो राम होने को आया।
एम्म… ह…. आह… म्म्म्मम.. करो..आह.. तेजज… ऑश अहह….!
दीदी ने अपनी दोनों टाँगें उठा कर धर्मेश की कमर पर कस दी, जैसे इनकी चूत हमेशा के लिए धर्मेश का लंड अपने में कैद कर लेना चाहती है। थोड़ी देर बाद धर्मेश ने एक लंबा शॉट मारा और दीदी के ऊपर ही लेट गया, उसका सारा रस दीदी की चूत ने पी लिया।
दो मिनट बाद वो उठ कर खड़ा हुआ और कपड़े पहन कर चला गया, दीदी अभी भी वैसे ही लेटी हुई थी, दोनों टाँगे अभी भी खुली हुई थीं, चूत का मुँह थोड़ा खुला हुआ था और धर्मेश का वीर्य धीरे धीरे बाहर रिस रहा था।
बड़ा ही मोहक दृश्य था !
फिर दीदी भी उठकर अपने कपड़े ठीक करने लगी, और मेरी भी बारिश हो गई।
मुझे अब वहाँ रुकना ठीक नहीं लगा, सोचा इससे पहले वो निकले, मैं निकल लेता हूँ और मैं वहाँ से चला आया।
पर रास्ते में कुछ बातें मुझे परेशान करती रहीं : संदीप भैया घर में और यहाँ यह दर्ज़ी, और कितने?
किस तरह दीदी ने चूत में वीर्य डलवाया, क्या ये दोनों बेटे उनके पति के ही हैं? दीदी चाची को किस बारे में ब्लैकमेल कर रहीं थीं?
कहानी जारी रहेगी अगले अंक में……….