कामिनी और दिव्या – अनोखी दास्ताँ (पार्ट 1)

मेरा लन्ड भी चूत की खुशबू मिलते ही वापिस रंगत में आ गया। मैंने अपनी जीभ निकाली और उसकी चूत के होठों से छुआ दी, आह… नमकीन सा स्वाद!
अब मैंने पूरी जीभ अंदर घुसेड़ दी, साथ ही उसके दाने को अंगुली से सहलाने लगा, इससे कामिनी की प्यास अचानक से बढ़ गयी और वो मेरे लन्ड को जोर जोर से चूसने लगी, मैंने भी चूत चाटने की रफ्तार बढ़ा दी, हम दोनों के शरीर आग की तरह तप रहे थे लेकिन कामुकता के खेल की रफ्तार धीमी नहीँ होने दी.

10 मिनट की चुसाई के बाद हम दोनों के शरीर अब चरम पर आने को थे, हम दोनों की आवाजें हॉल में गूंज रही थी. शुक्र है कि दिव्या के कमरे का दरवाजा बंद था वरना वो जग जाती।
अचानक मेरे शरीर ने फिर से झटका खाया और फूट पड़ा, जैसे ही मेरे लन्ड की पिचकारी कामिनी के मुंह से टकराई, वैसे ही कामिनी की चूत का दरिया भी बहने लगा और वो आआआ आआआ आआहम्म… की आवाज के साथ कांपने लगी और अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ने लगी।

हम दोनों ने एक दूसरे के अंगों को ढंग से चाटा, फिर अलग हुए लेकिन कामिनी मेरे लन्ड को नहीं छोड़ रही। कुछ देर बाद वह फिर से उसपे जीभ फिराने लगी, अब मेरे लन्ड में दर्द होने लगा, जब मैंने उसे कहा कि दर्द हो रहा है तो वह बोली- यह घोड़ा है और घोड़े कभी थकते नही।

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यह सुनकर मेरे लन्ड में फिर से जोश आने लगा। अब कामिनी मेरे लन्ड को जोर जोर से नहीं चूस रही थी, बल्कि आराम से जीभ फिराते हुए सहला रही थी, लन्ड के मूतने वाले छेद के ऊपर अपनी जीभ को रगड़ने लगी.
अब मुझे दर्द की जगह मजा आने लगा, लन्ड भी फन उठाने लगा।

जब लन्ड पूरी तरह तन गया, तब मैं उठा और उसके ऊपर आ गया, लन्ड का टोपा उसकी चूत पर टिका दिया, थोड़ी देर पहले उसने मुझे दर्द दिया था तो अब मैंने बेरहमी दिखाने की सोची और एक ही झटके में सारा लन्ड उसकी चूत की जड़ में उतार दिया, वो इतनी जोर से चिल्लाई कि पूरे मोहल्ले को सुन जाता.

लेकिन ऐन वक्त पर मैंने उसके मुंह पर हाथ रख लिया था। थोड़ी देर बाद मैंने हाथ हटाया तो बोली- आज तो मार ही दिया तुमने, इतने सालों से चुदी नहीं हूँ।
मैंने उसकी तरफ फ्लाइंग किस दी और उसके मम्मों को हाथ से दबाने लगा, उसकी आंखें बंद होने लगी, मैं भी अब गाड़ी को पटरी पर लाने लगा और धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी.

2 मिनट बाद ही उसका बांध टूट गया और वो बह गई। मैंने प्रश्न भरी नजरों से उसकी तरफ देखा तो बोली- तुम्हारे लन्ड की आग में पिघल गयी मैं। आज के बाद मैं आपकी दासी और आप मेरे स्वामी। यह तन और मन आपका हो गया है।

मैं भी उसकी इन प्यार भरी बातों में इमोशनल हो गया और लन्ड बाहर निकाल लिया, उसने फिर से लन्ड को होंठों के हवाले कर दिया, लगभग 10 मिनट चूसने के बाद लन्ड भी उसके मुंह में पिघल गया। फिर एक बार उसने एक एक बूंद चाट ली।

अब हम नंगे ही आराम करने लगे, उसे अपने पास लाकर मैंने उससे कहा- कामिनी, मैं तुमसे कुछ मांगना चाहता हूं, क्या तुम मुझे दोगी?
इस पर वह बोली- तुम कुछ भी मांग लो, मैं तुम्हे मना नहीं करूँगी, वैसे भी दिव्या के अलावा मेरे पास कुछ है नहीं।

मैं उठ बैठा और उसका हाथ पकड़ कर अपनी नजरें नीची करते हुए उससे कहा- क्या मैं दिव्या को अपने जीने की वजह जिंदगी भर के लिए बना सकता हूँ?
कामिनी यह सुनकर गहरी सोच में डूब गई।
कामिनी को सोच में डूबा देखकर मैंने उससे पूछा- क्या तुम नहीं चाहती कि दिव्या मेरी हो जाये?
यह सुनकर कामिनी सहसा मेरी तरफ देखकर बोली- नहीं, ऐसी बात नहीं है … लेकिन ले देकर मेरे पास दिव्या ही है, उसे मैं अपने आप से दूर नहीं करना चाहती।
उसकी इस बात पर मैंने कुछ देर सोचकर कहा- देखो कामिनी जी, मुझे दिव्या से बहुत लगाव हो गया है, मेरी जिंदगी उसी की दी हुई अमानत है, मैं नहीं चाहता उसकी मासूमियत कभी खो जाए, उसे मैं जिंदगी की हर खुशी देने की कोशिश करूंगा, मेरे पास जो कुछ भी है सब उसका ही है, साथ ही उसे एक लायक इंसान बनाऊंगा, यह वादा करता हूँ मैं।

मेरी यह बात सुनकर कामिनी ने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है आपने मेरी सारी चिंता दूर कर दी, मेरी तरफ से दिव्या आपकी है, लेकिन एक बात अब भी मुझे खाये जा रही है, हमारे बीच जो हुआ वो सब दिव्या को पता चलेगा तो? उसने यह बात बोली ही थी कि दिव्या ने अपने कमरे का दरवाजा खोला। अंगड़ाई लेते हुए दिव्या- मां, आप लोग सोये नहीं क्या? आप लोग क्या बातें कर रहे हैं?
उसकी यह बात सुनकर हम दोनों एक दूसरे के मुँह की ओर देखने लगे, मैंने बात संभालते हुए कहा- दिव्या हम लोग यह सोच रहे थे कि कल शॉपिंग करने कहाँ चलेंगे।
चहकते हुए दिव्या- सच में? मुझे भी कपड़े खरीदने हैं, मेरे पास कपड़े नहीं हैं।

उसकी इस चहक को देखकर ना जाने क्यूँ मेरी आँखें टपक पड़ी और उसके गाल सहलाते हुए मैंने कहा- हां दिव्या, तुम्हारा जितना मन करे उतनी शॉपिंग कर लेना।
यह कहते कहते मैं सोचने लगा इस फूल को कभी मुरझाने नहीं दूंगा।

अब सुबह हो चली थी, मन की धुंध भी कुछ हद तक छंट चुकी थी लेकिन कामिनी का वह प्रश्न अब भी मेरे दिमाग में घूम रहा था। मैंने अपने कपड़े पहने और मॉर्निंग पर निकल गया। चलते चलते यही सोच रहा था कि कामिनी के प्रश्न का क्या करूँ?